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पाठ - 6 कार्तिकेयानुप्रेक्षा
1.
जम्मं मरणेण समं संपज्जइ जोव्वणं जरा-सहियं । लच्छी विणास-सहिया इय सव्वं भंगुरं मुणह॥
2.
अथिरं परियण-सयणं पुत्त-कलत्तं सुमित्त-लावण्णं। गिह-गोहणाइ सव्वं णव-घण-विदेण सारिच्छं ।
3.
सुरधणु-तडिव्व चवला इंदिय-विसया सुभिच्च-वग्गा य। दिट्ठ-पणट्ठा सव्वे तुरय-गया रहवरादी य॥
पंथे पहिय-जणाणं जह संजोओ हवेइ खणमित्तं । बंधु-जणाणं च तहा संजोओ अद्भुओ होइ॥
अइलालिओ वि देहो ण्हाण-सुयंधेहिँ विविह-भक्खेहिं। खणमित्तेण वि विहडइ जल-भरिओ आम-घडओ व्व॥
6.
ता भुंजिज्जउ लच्छी दिज्जउ दाणे दया-पहाणेण। जा जल-तरंग-चवला दो तिण्णि दिणाइ चिट्टेइ।।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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