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________________ पावसियालया एए कुम्मए दोच्चं पि तच्चं पि सव्वओ समंता उव्वत्तेंति नो चेव 9. संचारन्ति करेत्तए ता संता तंता परितंता निव्विन्ना समाणा सणियं सणियं पच्चोसक्कंति एतमवक्कमंत निच्चला निप्फंदा तुसिणीया 352 Jain Education International [(पाव) वि - (सियाल) 'अ' स्वार्थिक 1/2 ] पापी सियार (अ) 2 / 2 सवि इन (कुम्म) 'अ' स्वार्थिक 2/2 कछुओं को अव्यय दो बार और अव्यय [ ( तच्चं ) + (पि) ] [ ( तच्चं ) अव्यय - (पि) अव्यय ] अव्यय अव्यय ( उव्वत्त) व 3 / 2 सक अव्यय अव्यय अव्यय ( संचाय) व 3 / 2 अक (कर) हेकृ अव्यय (संत) भूकृ 1/2 अनि (तंत) भूक 1/2 अनि (परितंत) भूक 1/2 अनि (निव्विन्न) 1/2 वि ( समाण) 1 / 2 वि अव्यय अव्यय ( पच्चोसक्क) व 3 / 2 अक [(एगंतं) + (अवक्कमंति) ] एतं ( एगंत) 2/1 अवक्कमंति (अवक्कम) व 3 / 2 सक (निच्चल) 1/2 वि (निप्फंद) 1/2 वि (तुसिणीय) 1/2 वि For Private & Personal Use Only तीन बार, भी सब ओर से चारों तरफ से उल्टा करते हैं नहीं परन्तु पादपूरक समर्थ होते हैं (शरीर के लिए बाधा ) करने के लिए तब थके हुए परेशान हुए अत्यन्त बैचेन हुए दुःखी क्रोधी धीरे धीरे पीछे हटते हैं एकान्त में जाते निश्चल स्थिर चुप प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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