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________________ मज्झरत्तीए गिद्दारे समागया पिहिअं दारं दहूण दारुग्घाडणाए उच्चसरेण अक्कोसंति दारं उघाडे त्ति तया दारसमीवे सयणत्थे' पुरोहिओ जागरंतो कहे मज्झरत्तिं जाव कत्थं तुम्हे थिआ अहुणा न उघाडिस्सं 332 [ ( मज्झ ) - ( रत्ति) 7 / 1 ] [(गिह)-(द्दार) 7/1] ( समागय) भूक 1/2 अनि (पिहिअ) भूक 2 / 1 अनि Jain Education International (दार) 2/1 (दहूण) संकृ अनि [(दार) + (उग्घाडणाए ) ] [(दार) - (उग्घाडणा) 4 / 1] [ (उच्च) वि- (सर) 3 / 1] - (अक्कोस ) व 3 / 2 सक (दार) 2/1 ( उघाड ) विधि 2 / 1 सक अव्यय अव्यय [(दार) - (समीव) 7 / 1] [ ( सयण) - (अत्थे) 7 / 1 क्रिवि अनि प्रयोग ] (पुरोहिअ) 1/1 (जागर) वकृ 1 / 1 (कह) व 3 / 1 सक [ ( मज्झ ) - ( रत्ति) 2 / 1 ] अव्यय अव्यय (तुम्ह) 1/2 स (थिअ) भूकृ 1 / 2 अनि अव्यय अव्यय ( उघाड ) भवि 1 / 1 सक मध्यरात्रि में घर के द्वार पर साथ-साथ आये For Private & Personal Use Only ढका हुआ द्वार को देखकर द्वार खोलने के लिए उच्च स्वर से पुकारते हैं (पुकारा) द्वार खोलो वा भावार्थ द्योतक तब द्वार के समीप सोने के प्रयोजन को (रखकर ) पुरोहित (ने) जागते हुए कहता है (कहा ) मध्यरात्रि को भी कहाँ 1. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135) तुम ठहरे अब नहीं खोलूँगा प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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