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पाठ - 3 उत्तराध्ययन
मगध के शासक, राजा श्रेणिक (जो) प्रचुर रत्नवाले (सम्पन्न) (कहे जाते थे) सैर को निकले (और) (वे) मण्डिकुक्षी (नाम के) बगीचे में (गए)।
2.
(वह) बगीचा तरह-तरह के वृक्षों और बेलों से भरा हुआ (था), तरह-तरह के पक्षियों द्वारा उपभोग किया हुआ (था), तरह-तरह के फूलों से ढका हुआ (था) और इन्द्र के बगीचे के समान (था)।
3.
वहाँ उन्होंने (राजा ने) आत्म-नियन्त्रित, सौन्दर्य युक्त, पूरी तरह से ध्यान में लीन, पेड़ के पास बैठे हुए (तथा) (सांसारिक) सुखों के लिए उपयुक्त (उम्रवाले) साधु को देखा।
और उसके रूप को देखकर राजा के (मन में) उस साधु में (देखे गए) सौन्दर्य के प्रति अत्यधिक, परम तथा बेजोड़ आश्चर्य (घटित) हुआ।
5.
(परम) आश्चर्य! (देखो) (साधु का) (मनोहारी) रंग (और) आश्चर्य! (देखो) (आकर्षक) सौन्दर्य! (अत्यधिक) आश्चर्य। (देखो) आर्य की सौम्यता; (अत्यन्त) आश्चर्य! (देखो) (आर्य का) धैर्य; आश्चर्य! (देखो) (साधु का) सन्तोष (और) (अतुलनीय) आश्चर्य। (देखो) (सुकुमार) (साधु की) भोग में अनासक्तता।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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