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________________ संजाआ (संजाअ(स्त्री)संजाआ) 1/1 जया जब वह ससुरगेहे आगया ससुर के घर में आ गई तया तब ससुराई ससुर आदि को अव्यय (ता) 1/1 स [(ससुर)- (गेह) 7/1] (आगय(स्त्री)आगया) भूकृ 1/1 अनि अव्यय [(ससुर) + (आई)] [(ससुर)-(आइ) 2/1] (धम्म) 5/1 (विमुह) 2/1 वि (दळूण) संकृ अनि (ती) 3/1 स [(बहु) वि-(दुह) 1/1] (संजाय) भूकृ 1/1 अनि धर्म से विमुख देखकर धम्माओ विमुहं द₹ण तीए बहुदुहं संजायं उसके द्वारा बहुत दुःख प्राप्त किया गया कैसे अव्यय कहं मम नियवयस्स होज्जा कहं निजव्रत का होगा कैसे वा देवगुरुविमुहाणं ससुराईणं (अम्ह) 6/1 स [(निय)-(वय) 6/1] (हो) भवि 3/1 अक अव्यय अव्यय [(देव)-(गुरु)-(विमुह) 4/2 वि] [(ससुर) + (आइ)] [(ससुर)-(आइ) 4/2] [(धम्म) + (उवएसो)] [(धम्म)-(उवएस) 1/1] (भव) भवि 3/1 अक अव्यय अथवा देवगुरु से विमुख ससुर आदि के लिए धम्मोवएसो धर्म का उपदेश होगा भवेज्जा एवं इस प्रकार सा वह (ता) 1/1 स (वियार) व 3/1 अक वियारेइ विचार करती है 284 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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