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वहाई णेइज्जन्तं आणं
द₹णं कारणं
(वह-वहा-वहाइ) 4/1
वध के लिए (णेअ-णेइज्ज-णेइज्जंत) कर्म वकृ 2/1 ले जाए जाते हुए (आण) 2/1 क्रिविअ
आदेश (त) 2/1 स
उसको (दळूणं) संकृ अनि
देखकर (कारण) 2/1
कारण को (णच्चा) संकृ अनि
जानकर (त) 6/1 स
उसकी (रक्ख ण) 4/1
रक्षा के लिए (कण्ण ) 7/1
कान में
णच्चा
तस्स
रक्खणाय
कण्णे किंपि
अव्यय
कुछ
कहिऊण
कहकर
उवायं दंसेड़ हरिसंतो
(कह) संकृ (उवाय) 2/1 (दंस) व 3/1 सक (हरिस) वकृ 1/1
उपाय दिखलाता है (दिखलाया) प्रसन्न होते हुए
जया
अव्यय
जब
वध के खम्भे पर
वहत्थंभे ठविओ
खड़ा किया गया
तब
तया चंडालो
चाण्डाल
उसको
पुच्छइ जीवणं
[(वह)-(त्थंभ) 7/1] (ठव) भूकृ 1/1 अव्यय (चंडाल) 1/1 (त) 2/1 स (पुच्छ) व 3/1 सक (जीवण) 2/1 अव्यय (तुम्ह) 6/1 स (का) 1/1 स वि (अव्यय) भी (इच्छा ) 1/1
विणा
पूछता है (पूछा) जीवन के बिना (अलावा) तुम्हारी कोई भी इच्छा
तव
कावि
इच्छा
1. 2.
अनुस्वार का आगम हुआ है। इस शब्द में वकृ. के दो प्रत्यय न्त और माण लगे हैं। व्याकरण के नियमानुसार एक ही प्रत्यय का प्रयोग होना चाहिए।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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