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________________ अलियवाई होन्ति मिथ्याभाषी होते हैं बड़े कुल में उत्पन्न हुए इसलिए महाकुलजाया [(अलिय)-(वाइ) 1/2] (हो) व 3/2 अक [(महा) वि-(कुल)-(जा) भूकृ 1/2] अव्यय (भरह) 1/1 (कुण) विधि 3/1 सक (रज्ज) 2/1 तम्हा भरहो भरत करे कुणउ रज्जं राज्य 33. तत्थेव वहाँ, काणणवणे वन में पच्चक्खं प्रत्यक्ष (समक्ष) सब राजाओं के सव्वनरवरिन्दाणं भरहं [(तत्थ) + (एव)] तत्थ (अव्यय) एव (अव्यय) (काणण-वण) 7/1 (पच्चक्ख) 1/1 [(सव्व)-(नरवरिंद) 6/2] (भरह) 2/1 (ठव) व 3/1 सक (रज्ज) 7/1 (राम) 1/1 (सोमित्ति) 3/1 (सहिअ) 1/1 वि ठवेड़ भरत को बैठाता है (बिठाया) राज्य पर रामो राम लक्ष्मण के सोमित्तिणा सहिओ साथ 34. नमिऊण केगईए भुयासु उवगूहिउँ भरहसामि (नम) संकृ (केगई) 4/1 (भुय) 7/2 (उवगृह) संकृ [(भरह)-(सामि) 2/1] अव्यय (त) 1/2 सवि [(सीया)-(सहिय) 1/2 वि] (संभास) संकृ [(सव्व)-(सामन्त) 2/2] नमस्कार करके कैकेयी को भुजाओं में आलिंगन करके भरत राजा को पादपूरक अह सीता सहित सीयासहिया संभासिय सव्वसामन्ते कहकर सब सामन्तों को 272 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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