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रामो
राम
(राम) 1/1 (वइदेही) 1/1
वइदेही वि
सीता ने
अव्यय
तथा ससुर को
अव्यय (ससुर) 2/1 (पणम) व 3/1 सक (परम) 3/1 वि (विणय) 3/1
ससुरं पणमइ परमेण विणएणं
प्रणाम करती है (किया)
अत्यन्त
आदर के साथ
39.
सव्वाण
सभी
सासुयाणं काऊणं
चलणवन्दणं सीया सहियायणं
(सव्व) 6/2 सवि (सासुया) 6/2 (काऊणं) संकृ अनि [(चलण)-(वन्दण) 2/1] (सीया) 1/1 [(सहिया)-(यणं) 2/1] अव्यय (णियय) 2/1 वि (आपुच्छ) संकृ (निग्गय) भूक 1/1 अनि (एत) 5/1 स
सासुओं के करके चरणों में वन्दन सीता सखियों एवं (अन्य) जनों की
तथा
निययं आपुच्छिय निग्गया
अपनी अनुमति लेकर निकली
एत्तो
यहाँ से
40.
जाने के लिए
गन्तूण समाढत्तं
उद्यत
राम
राम को
देखकर
द₹ण लक्खणो रुट्टो
(गन्तूण) हेकृ अनि (समाढत्त) 2/1 वि (राम) 2/1 (दह्रण) संकृ अनि (लक्खण) 1/1 (रुट्ठ) भूकृ 1/1 अनि (ताअ) 3/1 [(अयस)-(बहुल) 1/1 वि]
लक्ष्मण रुष्ट हुआ पिता के द्वारा बहुत अपयश वाला
ताएण अयसबहुलं
कह
अव्यय
क्यों
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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