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ववसिओ मोत्तुं
(ववसिअ) भूक 1/1 अनि (मोत्तुं) हेकृ अनि
उद्यत हुए हो छोड़ने के लिए
अव्यय
तब
(भण) व 3/1 सक
कहता है
भणइ नरवरिन्दो पच्चक्खं
(नरवरिन्द) 1/1
राजा
समक्ष हे मनुष्यो!
वो
जगत
जयं निरवसेसं सुक्कं
सारा
(पच्चक्ख) 1/1 संबोधन (जय) 1/1 (निरवसेस) 1/1 वि (सुक्क) भूकृ 1/1 अनि अव्यय [(तणं)+ (असार)] तणं (तण) 1/1 असारं (असार) 1/1 वि (डज्झ) व कर्म 3/1 सक अनि [(मरण) (अग्गिणा)] [(मरण)-(अग्गि) 3/1] अव्यय
सूखा हुआ जैसे कि
तणमसारं
तिनका, असार
डज्झइ मरणग्गिणा
जलाया जाता है मरणरूपी अग्नि से
निययं
लगातार
6.
भवियाण
भव्यों के लिए
जो
सुगिज्झं
अग्गिज्झं अभवियाण
(भविअ) 4/2 वि (ज) 1/1 स (सुगिज्झ) विधिकृ 1/1 अनि (अग्गिज्झ) विधिकृ 1/1 अनि (अभविय) 4/2 वि (जीव) 4/2 (तियस) 4/2 (पत्थ) विधिकृ 1/1
जीवाणं
ग्रहण करने योग्य ग्रहण करने योग्य नहीं है अभव्यों के लिए जीवों के लिए देवों के लिए अभिलाषा किये जाने योग्य (है)
तियसाण
पत्थणिज्जं
1.
पाठ में 'धणियं' शब्द है। हमने यहाँ पउमचरियं भाग-1, पृष्ठ संख्या 250 पर ‘धणिय' के स्थान पर बताए गए निययं शब्द का प्रयोग किया है।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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