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अंतोवायेण
आन्तरिक, साधन से
[(अंत)+ (उवायेण)] अंत (अव्यय) उवायेण (उवाय) 3/1 (चय) विधि 2/1 सक (बहिरप्प) 2/1 अपभ्रंश
छोडो
चयहि बहिरप्पा
बहिरात्मा को
23.
अक्खाणि
बहिरप्पा अंतरअप्पा
अप्पसंकप्पो कम्मकलंकविमुक्को परमप्पा
(अक्ख) 1/2
इन्द्रियाँ (बहिरप्प) 1/1
बहिरात्मा [(अंतर)-(अप्प) 1/1]
अन्तरात्मा अव्यय [(अप्प)-(संकप्प) 1/1]
आत्मा का विचार [(कम्म)-(कलंक)-(विमुक्क) 1/1 वि] कर्म-कलंक से मुक्त (परमप्प) i/1
परम-आत्मा (भण्ण) व कर्म 3/1 सक अनि कहा जाता है (देव) 1/1
भण्णए
देवो
देव
24.
आरुहवि' अंतरप्पा बहिरप्पा छंडिऊण तिविहेण
ग्रहण कर अन्तरात्मा को बहिरात्मा को
(आरुह) संकृ अपभ्रंश (अंतरप्प) 2/1 अपभ्रंश (बहिरप्प) 2/1 अपभ्रंश (छंड) संकृ (तिविह) 3/1 (झा) व कर्म 3/1 सक (परमप्पा) 1/1 (उवइट्ठ) 1/1 वि (जिणवरिंद) 3/2
छोड़कर तीन प्रकार से
झाइज्जइ परमप्पा उवइ8 जिणवरिंदेहिं
ध्याया जाता है परम आत्मा कथित अरहन्तों द्वारा
25. बहिरत्थे
बाह्य पदार्थ में
[(बहिर) + (अत्थे)][(बहिर) वि(अत्थ) 7/1] [(फुरिय) भूकृ-(मण) 1/1]
फुरियमणो
लगा हुआ, मन
'आ' पूर्वक ‘रुह' धातु के अर्थ प्रयुक्त संज्ञा के अनुसार विभिन्न प्रकार के होते हैं। (आरुह+ अवि= आरुहवि) यहाँ ‘अवि' प्रत्यय जोड़ा गया है।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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