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________________ सुयग्गाही मा सुने हुए को ग्रहण करनेवाले मत विश्वास करो पत्तीय जं देखा गया दिटुं पच्चक्खं प्रत्यक्ष [(सुय) वि-(ग्गाही) 1/1 वि] अव्यय (पत्तीय) विधि 2/1 सक (ज) 1/1 सवि (दिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि (पच्चक्ख) 1/1 अव्यय अव्यय (दिट्ठ) भूक 7/1 अनि [(जुत्त)+(अजुत्तं)][(जुत्त)-(अजुत्त) 2/1 वि] (वियार) विधि 2/2 सक वि और दिढे जुत्ताजुत्तं देखे जाने पर उचित और अनुचित का (को) विचार करो वियारेह 42. अप्पाणं अपनी शक्ति को न जानते हुए अमुणंता जो आरंभंति (अप्पाण) 2/1 (अमुण) वकृ 1/2 (ज) 1/2 स (आरंभ) व 3/2 सक (दुग्गम) 2/1 वि (कज्ज) 2/1 [(पर)-(मुह)-(पलोअ) भूक 4/2] दुग्गम कज्जं परमुहपलोइयाणं आरम्भ कर देते हैं कठिन कार्य परमुख की ओर देखे हुए के लिए उनके लिए किस तरह होती है (होगी) जय-लक्ष्मी ताणं कह होइ जयलच्छी (त) 4/2 सवि अव्यय (हो) व 3/1 अक [(जय)-(लच्छी ) 1/1] 43. सिग्धं करो आरुह कज्जं अव्यय तेजी से (फुर्ती से) (आरुह) विधि 2/1 सक (कज्ज) 2/1 कार्य को प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमान काल का प्रयोग प्रायः भविष्यत्काल के अर्थ में होता है। 1. 192 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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