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________________ जए नेहो (जअ) 7/1 जगत में (नेह) 1/1 स्नेह अव्यय नहीं (चल) व 3/1 अक चलायमान होता है [(दूर) अ-दूर- (ट्ठिअ) भूक 6/2 अनि] दूर, स्थित अव्यय चलइ दूरट्ठियाणं पि 34. संतेहि असंतेहि विद्यमान अविद्यमान य परस्स किं तथा दूसरे के क्या कहे हुए (से) दोषों से जंपिएहि दोसेहिं # # FEEEEEEEEEEEEEEEEEET अत्थो अर्थ (संत) 3/2 वि (असंत) 3/2 वि अव्यय (पर) 6/1 वि (किं) 1/1 सवि (जंप) भूक 3/2 (दोस) 3/2 (अत्थ) 1/1 (जस) 1/1 अव्यय (लब्भइ) व कर्म 3/1 सक अनि (त) 1/1 स अव्यय (अमित्त) 1/1 (कअ) भूकृ 1/1 अनि (हो) व 3/1 अक जसो यश नहीं प्राप्त किया जाता है लब्भइ सो वह किन्तु शत्रु अमित्तो कओ बनाया गया होता है होइ 35. सीलं वरं कुलाओ (सील) 1/1 अव्यय (कुल) 5/1 (दालिद्द) 1/1 (भव्व) 1/1 वि स्वार्थिक ‘य' प्रत्यय शील श्रेष्ठतर कुल से निर्धनता अच्छी दालिदं भव्वयं अव्यय तथा 188 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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