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________________ जंपसि पियाई (जंप) व 2/1 सक (पिय) 2/2 वि (सज्जण) 8/1 (तुम्ह) 6/1 स (सहाव) 1/1 बोलते हो प्रिय (वचनों) को हे सज्जन! सज्जण तुम्हारा तुज्झ सहावो स्वभाव अव्यय नहीं याणिमो (याण) व 1/2 सक (क) 6/1 सवि (सारिच्छ) 1/1 वि जानते हैं किसके कस्स सारिच्छो समान 12. नेच्छसि नहीं, परावयारं परोवयारं निच्चमावहसि अवराहेहि [(न) + (इच्छसि)] न अव्यय इच्छसि (इच्छ) व 2/1 सक इच्छा करते हो [(पर) + (अवयारं)][(पर)-(अवयार) 2/1] दूसरे के अपकार की [(पर) + (उवयारं)][(पर)-(उवयार) 2/1] दूसरे का उपकार अव्यय तथा [(निच्चं)+ (आवहसि)] निच्चं (अव्यय) सदा, आवहसि (आवह) व 2/1 सक करते हो (अवराह) 3/2 अपराधों के कारण अव्यय (कुप्प) व 2/1 सक क्रोध करते हो (सुयण) 8/1 हे सज्जन! अव्यय नमस्कार (तुम्ह) 4/1 स तुम्हारे (सहाव) 4/1 स्वभाव के लिए नहीं कुप्पसि सुयण नमो सहावस्स 13. दोहिं चिय पज्जत्तं बहुएहि (दो) 3/2 वि अव्यय (पज्जत्त) 1/1 (बहुअ) 3/2 वि अव्यय बहुत से प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 177 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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