SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अबीया सत्थकुसला मंत-मूलविसारया 22. (अ-बीय) 1/2 वि [(सत्थ)-(कुसल) 1/2 वि] [(मंत)-(मूल)-(विसारय) 1/2 वि] अद्वितीय शास्त्र में योग्य मंत्रों के आधार में प्रवीण तिगिच्छ (त) 1/2 स (अम्ह) 6/1 स (तिगिच्छा) 2/1 (कुव्व) व 3/2 सक (चाउप्पाय) 2/1 वि [(जहा)+ (हिय)] जहा (अ) हियं (हिय) 2/1 वि वे (उन्होंने) मेरी चिकित्सा करते हैं (की) चार प्रकार की जैसे, हितकारी कुव्वंति चाउप्पायं जहाहियं अव्यय नहीं अव्यय किन्तु दुःख से दुक्खा विमोयंति (दुक्ख) 5/1 (विमोय) व 3/2 सक (एता) 1/1 सवि छुड़ाते हैं (छुड़ाया) एसा यह मज्झ मेरी (अम्ह) 6/1 स (अणाहया) 1/1 अणाहया अनाथता 23. पिया पिता ने मेरे सव्वसारं (पिउ) 1/1 (अम्ह) 6/1 स [(सव्व) वि-(सार) 2/1] अव्यय (दा) विधि 2/1 सक सभी प्रकार की धन-दौलत पि भी देज्जाहि देना चाहिए (दी) कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137) पूरी या आधी गाथा के अन्त में आनेवाली 'इ' का क्रियाओं में बहुधा 'ई' हो जाता है। (पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 138) हेम प्राकृत व्याकरण, 3-178 164 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy