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जाणे
अणाहस्स
अत्थं पोत्थं
(जाण) व 1/1 सक (अणाह) 6/1 (अत्थ) 2/1 (पोत्था) 2/1 अव्यय (पत्थिव) 8/1
समझता हूँ अनाथ के अर्थ को मूलोत्पत्ति को और
पत्थिवा
हे राजा!
जहा
अव्यय
जैसे
अणाहो
अनाथ
(अणाह) 1/1 (भव) व 3/1 अक
भवइ
होता है
सणाहो
(सणाह) 1/1
सनाथ
या
अव्यय (नराहिव) 8/1
नराहिवा
हे राजा!
16. सुणेह
महारायं
(सुण) विधि 2/2 सक (अम्ह) 3/1 स (महाराय) 8/1 (अव्वक्खित्त) 3/1 वि (चेय) 3/1 अव्यय
सुनो मेरे द्वारा हे राजाधिराज! एकाग्र (चित्त) से चित्त से जैसे
अव्वक्खित्तेण
चेयसा
जहा अणाहो भवति
(अणाह) 1/1
अनाथ
(भव) व 3/1 अक
जहा
अव्यय
(अम्ह) 3/1 स अव्यय (पवत्तिय) भूकृ 1/1 अनि
होता है जैसे मेरे द्वारा पादपूरक संस्थापित (प्रवृत्त किया हुआ)
पवत्तियं
पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 676 आदरसूचक में बहुवचन होता है। अनुस्वार का आगम हुआ है (हेम प्राकृत व्याकरण, 1-26)
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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