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________________ अव्यय जब तक नहीं जाव न पीलेइ वाही सताता है रोग जाव जब तक नहीं वड्डई। बढ़ता है जाविंदिया अव्यय (पील) व 3/1 सक (वाहि) 1/1 अव्यय अव्यय (वढ) व 3/1 अक [(जाव) + (इंदिया)] जाव (अव्यय) इंदिया (इंदिय) 1/2 अव्यय (हाय) व 3/2 अक अव्यय (धम्म) 2/1 (समायर) विधि 3/1 सक जब तक, इन्द्रियाँ नहीं हायंति क्षीण होती हैं ताव धम्म समायरे तब तक धर्म (को) आचरण कर लेना चाहिए 34. आहारोसहसत्थाभय-भेओ जो चउव्विहं दाणं [(आहार)+(ओसह)+ (सत्थ) + (अभय)+ आहार, औषध, शास्त्र, (भेओ)] [(आहार)-(ओसह)-(सत्थ)- अभय (के रूप में) (अभय)-(भेअ) 1/1] विभाजन (ज) 1/1 सवि (चउव्विह) 1/1 वि चार प्रकार का (दाण) 1/1 दान (त) 1/1 सवि वह (वुच्चइ) व कर्म 3/1 सक अनि कहा जाता है (दा) विधिकृ 1/1 दिया जाना चाहिए [(णिद्दि8) + (उवासय)+ (अज्झयणे)] वर्णित, णिद्दि] (णिद्दिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि उपासकाध्ययन में [(उवासय)-(अज्झयण) 7/1] वुच्चइ दायव्वं णिद्दिद्रुमुवासयज्झयणे 35. जयणा जागरुकता (जयणा) 1/1 छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है। 1. प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 151 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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