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निद्दया'
न
वेरग्गं
ममत्तेणं
नारंभेण
दयालुया
25.
जागरह
नरा
णिच्चं
जागरमाणस्स
वडते
बुद्धी
जो
सुवति
ण
सो
धन्नो
जो
जग्ग
सो
सया
धन्नो
26.
विवत्ती
अविणीअस्स
संपत्ती
1.
146
( निद्दा) 3 / 1 अनि
अव्यय
(वेरग) 1 / 1
( ममत्त ) 3 / 1
(न) + (आरंभेण)
न (अव्यय)
आरंभेण (आरम्भ ) 3 / 1
( दयालुया ) 1 / 1
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(जागर) विधि 2 / 2 अक
(नर) 8/2
अव्यय
(जागर) वकृ 6/1
(वड्ढ ) व 3 / 1 अक
(बुद्धि) 1 / 1
(ज) 1 / 1 स
(सुव) व 3 / 1 अक
अव्यय
(त) 1 / 1 स
( धन्न) 1 / 1 वि
(त) 1 / 1 स
(जग्ग) व 3 / 1 अक
(त) 1 / 1 स
अव्यय
( धन्न) 1 / 1 वि
(faafa) 1/1 ( अविणीअ ) 6 / 1
(संपत्ति) 1 / 1
समं, सह आदि के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
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निद्रा के
नहीं
वैराग्य
आसक्ति के
नहीं
जीव हिंसा के
दयालुता
जागो
मनुष्यों
निरन्तर
जागते हुए (व्यक्ति) की
बढ़ती है
प्रतिभा
जो
सोता है
नहीं
वह
सुखी
जो
जागता है
वह
सदा
सुखी
अनर्थ
अविनीत के
समृद्धि
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ
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