SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अव्यय वैसे ही तह जयंमि जगत में जानो जाणसु धम्ममहिंसासमं (जय) 7/1 (जाण) विधि 2/1 सक [(धम्म)+(अहिंसा)+(समं)] धम्म (धम्म) 1/1 [(अहिंसा)-(सम) 1/1 वि] अव्यय धर्म, अहिंसा के समान नत्थि नहीं 23. जागरण जागरिया धम्मीणं अहम्मीणं सुत्तया सेया वच्छाहिवभगिणीए (जागरिया) 1/1 (धम्मि) 6/2 वि (अहम्मि) 6/2 वि अव्यय (सुत्त) 1/1 वि 'य' स्वार्थिक (सेया) 1/1 वि [(वच्छ) + (अहिव)+ (भगिणीए)] [(वच्छ)-(अहिव)-(भगिणी) 4/1] (अ-कह) भू 3/1 सक (जिण) 1/1 (जयंती) 4/1 धर्मात्माओं का अधर्मात्माओं का और सोया हुआ (सोना) सर्वोत्तम वत्स देश के राजा की बहन (के लिए) अकहिंसु जिणो जयंतीए' कहा था जिन ने जयंती के लिए (को) 24. नाऽऽलस्सेण' नहीं, आलस्य के समं साथ [(ना)+(आलस्सेण)] ना (अव्यय) आलस्सेण (आलस्स) 3/1 अव्यय (सुक्ख) 1/1 अव्यय (विज्जा) 1/1 अव्यय सुक्खं सुख नहीं विज्जा विद्या सह साथ 2. पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 753 'कह', आदि के योग में (जिससे कुछ कहा जाय उसमें) चतुर्थी विभक्ति होती है। समं, सह आदि के योग में तृतीया विभक्ति होती है। प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 145 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy