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________________ निग्गंथा वज्जयंति (निग्गंथ) 1/2 (वज्जयंति) व 3/2 सक अनि (त) 2/1 सवि संयत परित्याग करते हैं ण उस DO अव्यय तुम्हारे लिए नहीं प्रिय पिअं दुक्खं दुःख जानकर जाणि एमेव सव्वजीवाणं सव्वायरमुवउत्तो (तुम्ह) 4/1 स अव्यय (पिअ) 1/1 वि (दुक्ख) 1/1 (जाण) संकृ अव्यय [(सव्व) सवि-(जीव) 4/2] [(सव्व)+(आयरं)+ (उवउत्तो)] (एच) एशि-(अयर) 2/13 उवउत्तो' (उवउत्त) पंचमी अर्थक 'ओ' प्रत्यय [(अत्त) + (उवम्मेण)] [(अत्त)-(उवम्म) 3/1] (कुण) विधि 2/1 सक (दया) 2/1 इसी प्रकार सब जीवों के लिए सब (जीवों से) स्नेह, उचित रूप से अत्तोवम्मेण कुणसु दयं अपने से तुलना के द्वारा करो सहानुभूति 20. जीववहो अप्पवहो जीवदया अप्पणो [(जीव)-(वह) 1/1] [(अप्प)-(वह) 1/1] [(जीव)-(दया) 1/1] (अप्पण) 4/1 (दया) 1/1 (हो) व 3/1 अक अव्यय [(सव्व) सवि-(जीव)-(हिंसा) 1/1] जीव का घात खुद का घात जीव के लिए दया खुद के लिए दया होती है उस कारण से सब जीवों की हिंसा दया होड़ ता सव्वजीवहिंसा 1. उवउत्त+ओ= उवउत्तओ-उवउत्तो। प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 143 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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