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________________ 15. से जाणमजाणं वा कहुँ आहम्मिअं पयं संवरे खिप्पमप्पाणं बीयं 21. न समायरे 16. जे 15 ममाइय-मतिं जहाति ममाइयं से हु दिपहे hea मुणी ཝཱ जस्स नत्थि ममाइयं 1. 2. प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ (त) 1 / 1 स [ ( जाणं) + (अजाणं)] जाणं (क्रिविअ ) अजाणं (क्रिविअ ) अव्यय अव्यय (आहम्मिअ ) 2 / 1 वि ( पय) 2 / 1 ( संवर) विधि 3 / 1 सक Jain Education International [(खिप्पं)+(अप्पाणं)] खिप्पं (अ) अप्पाणं (अप्पाण) 2/1 अव्यय (त) 2 / 1 स अव्यय ( समायर) विधि 3 / 1 सक छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है। यहाँ अनुस्वार का आगम हुआ है। (ज) 1 / 1 स [(ममाइय) वि- (मति) 2 / 1 ] (जहा) व 3 / 1 सक (ममाइय) 2 / 1 वि (त) 1 / 1 स अव्यय [(दिट्ठ) भूक अनि - (पह) 1 / 1 ] (for) 1/1 (ज) 4 / 1 स अव्यय (ममाइय) 1 / 1 वि For Private & Personal Use Only वह पूर्व अज्ञानपूर्वक अथवा करके अनुचित कार्य को रोके तुरन्त अपने को दूसरी बार उसको नहीं करे जो ममतावाली वस्तु-बुद्धि को छोड़ता है ममतावाली वस्तु को वह ही जाना गया, पथ ज्ञानी जिसके लिए नहीं ममतावाली वस्तु 141 www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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