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________________ दुरंततीरम्हि हिंडमाणाणं भवियाणुज्जोययरा कठिन, छोर पर भ्रमण करते हुए (के लिए) संसारी (जीवों) के लिए प्रकाश को करनेवाले [(दुरंत) वि-(तीर) 7/1] (हिंड) वकृ 4/2 [(भवियाण)+ (उज्जोययरा)] भवियाण (भविय) 4/2 वि उज्जोययरा (उज्जोययर) 1/2 वि (उवज्झाय) 1/2 [(वर) वि-(मदि) 2/1] (दा) विधि 3/2 सक उवज्झाया वरमदि उपाध्याय श्रेष्ठ मति प्रदान करें दंतु 11. थिरधरियसीलमाला शीलरूपी मालाएँ दृढ़तापूर्वक धारण की गई राग दूर किये गये यश-समूह से पूर्ण ववगयराया जसोहपडिहत्था बहुविणयभूसियंगा [(थिर')-(धरिय) भूकृ-(सील)(माला) 1/2] [(ववगय) वि-(राय) 1/2] [(जस)-(ओह) + (पडिहत्था)] [(जस)-(ओह)-(पडिहत्थ) 1/2] [(बहु) + (विणय) + (भूसिय) +(अंगा)] [(बहु) वि-(विणय)(भूसिय) भूक-(अंग) 1/2] (सुह) 2/2 (साहु) 1/2 (पयच्छ) विधि 3/2 सक प्रचुर विनय से अलंकृत हुए शरीर के अंग सुख सुहाई साहू पयच्छंतु साधु प्रदान करें 12. अरिहंत अरिहंता असरीरा अशरीर आयरिया (अरिहंत) 1/2 (असरीर) 1/2 (आयरिय) 1/2 (उवज्झाय) मूलशब्द 1/2 (मुणि) 1/2 आचार्य उपाध्याय उवज्झाय' मुणिणो मुनि 2. थिर (क्रिविअ)= दृढ़तापूर्वक, थिर-थिर, यहाँ अनुस्वार का लोप हुआ है। कर्ताकारक के स्थान में केवल मूल संज्ञाशब्द भी काम में लाया जा सकता है। (पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 518) प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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