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________________ पव्वज्जामि साहू सरणं पव्वज्जामि केवलिपण्णत्तं (पव्वज्ज) व 1/1 सक (साहु) 2/2 (सरण) 2/1 (पव्वज्ज) व 1/1 सक [(केवलि)-(पण्णत्त) भूक 2/1 अनि] (धम्म) 2/1 (सरण) 2/1 (पव्वज्ज) व 1/1 सक जाता हूँ साधुओं की शरण में जाता हूँ केवली द्वारा उपदिष्ट धर्म की शरण में जाता हूँ धम्म सरणं पव्वज्जामि 6. पंच वि झायहि (झाय') विधि 2/1 सक ध्यान करो (ध्याओ) (पंच) 2/2 वि पाँच अव्यय गुरवे (गुरव) 2/2 गुरुओं (को) मंगलचउसरणलोयपरियरिए [(मंगल) वि-(चउसरण) वि कल्याणकारी, चार (लोय)-(परियर) भूकृ 2/2] (प्रकार की) शरण देनेवाले, लोक को विभूषित किये हुए णर-सुर-खेयर-महिए [(णर)-(सुर)-(खेयर)- (मह) भूक 2/2] मनुष्यों, देवताओं तथा विद्याधरों द्वारा पूजित आराहणणायगे [(आराहण)-(णायग') 2/2] आराधना के लिए श्रेष्ठ (वीर) 2/2 वि वीर वीरे 7. घणघाइकम्ममहणा तिहुवणवरभव्वकमलमत्तंडा [(घण) वि-(घाइकम्म)-(महण) 1/2 वि] प्रगाढ़ घातीकर्मों के विनाशक (तिहुवण)-(वर')-(भव्व) त्रिभुवन में विद्यमान (कमल)-(मत्तंड) 1/2 मुक्तिगामी जीवरूपी कमलों के लिए सूर्यरूपी (अरिह) 1/2 अरहंत अरिहा झा-झाय (अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त अन्य) स्वरान्त धातुओं में विकल्प से अ (य) जोड़ा जाता है। परिकृ-परिकर-परियर-परियरिअ-परियरिए (भूक 2/2) परिकृ (परिकर परियर-विभूषित करना)। यहाँ ‘णायग' विशेषण की तरह प्रयुक्त है, कोशों में इसे संज्ञा बताया गया है। प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002691
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2009
Total Pages384
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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