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घत्ता
पुणु उच्चकहाणी णिणि पुत्त परिकलिवि संगु णीचों हिण वाणारसिणयरि मणोहिरामु संतोसु वहंत णियमणम्मि जलरहियहिँ अडविहिँ सो पडिउ अमिण विणिम्मिय सुहयराइँ संतुट्ठउ तहों वणिवरहों राउ उवयारु महंत जाणएण
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पाठ - 12
करकण्डचरिउ
ता एक्कहिँ दिणि मंतीवरेण आहरणइँ लेविणु दिहिकरासु गयमोल्लइँ जणणयणहँ पियाइँ
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सन्धि
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2.16
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संपज्जइ संपइ जें विचित्त॥1॥ उच्चेण समउ किउ संगु तेण ॥ 2 ॥ अरविंदु णराहि अत्थि णामु ॥3॥ पारद्धिहँ गउ एक्कहिँ दिणम्मि ॥4॥ तहिँ तहएँ भुक्खएँ विण्णडिउ ॥ 5 ॥ तहों दिण्णइँ वणिणा फलइँ ताइँ ॥ 6 ॥ घरि जाइवि तहों दिण्णउ पसाउ || 7 || वणि णिहिय मंतिपयम्मि तेण ॥8 ॥
अणुराएँ विणि वि तहिँ वसहिँ दिणयरतेयकलायर । गुणगणरयणहँ सीलणिहि गहिरिमाइँ णं सायर ॥ 9 ॥
2.17
तों रायों णंदणु हरिवि तेण ॥1॥ गउ तुरिउ विलासिणिमंदिरासु ॥2 ॥ तहिँ वणिणा ताहें समप्पियाइँ ॥3॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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