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घत्ता
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तं णिसुणेवि चवइ रहुणन्दणु जाणमि जिह हरि - वंसुप्पणी जामि जिह जिण-सासर्णे भत्ती जा अणु-गुण- सिक्खा - वय-धारी जाणमि जिह सायर - गम्भीरी जाणमि अंकुस - लवण-जणेरी जामि सस भामण्डल - रायहों जाणमि जिह अन्तेउर-सारी
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पाठ
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पउमचरिउ
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सन्धि 83
83.2
" एत्तडउ दोसु पर रहुवइहें जं परमेसरि णाहिँ घरें । म पमायहि लोयहुँ छन्दॆण आर्णेवि का वि परिक्ख करें' ॥ 9 ॥
83.3
जा
'जाणमि सीयहॅ तणउ सइत्तणु ॥1 ॥ जाणमि जिह वय-गुण-संपण्णी ॥2॥ जाणमि जिह महु सोक्खुप्पत्ती ॥3॥ सम्मत्त - रयण-मणि - सारी ॥4॥ जाणमि जिह सुर- महिहर - धीरी ॥5॥ जाणमि जिह सुय जणयों केरी ॥16॥ जामि सामिणि रज्जहों आयहों ॥ 7 ॥ जाणमि जिह महु पेसण - गारी ॥8 ॥
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अपभ्रंश काव्य सारभ
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