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________________ पाठ - 2 पउमचरिउ सन्धि - 24 पउमचरिउ की चौबीसवीं सन्धि में वर्णित इस काव्यांश में उस समय का वर्णन है जबकि राम-लक्ष्मण और सीता वनवास को चले जाते हैं और उनके बिना सम्पूर्ण महल सुनसान नजर आता है। 24.1 नगर के सभी नागरिक व्याकुल हैं। उस समय पृथ्वी भी नि:श्वास लेती हुई प्रतीत होती है। नगर के लोग लक्ष्मण को एक क्षण भी विस्मृत नहीं कर पाते। अपनी प्रत्येक क्रिया में, साधन-प्रसाधन में उन्हें लक्ष्मण का स्मरण होता है। 24.3 राजा दशरथ भरत का राजतिलक करने लगते हैं परन्तु भरत उन्हें ऐसा करने से रोकता है। वह राज्य की असारता को लक्ष्य करते हुए अपनी संन्यास-ग्रहण की इच्छा व्यक्त करता है। 24.4 राजा दशरथ भरत को ऐसा करने से मना करते हैं और कहते हैं कि तुम्हें अभी प्रव्रज्या से क्या? अभी तुब बालक हो, इसलिये यह नहीं समझते कि जिन-प्रव्रज्या कितनी असहनीय होती है। अतः तुम राज करते हुए विषय-सुखों का उपभोग करो। वे भरत को तपस्या में होने वाले दु:ख व कठिनाइयाँ बताते हैं। ___24.5 दशरथ के द्वारा बालक के लिए संन्यास की अनुपयुक्तता की बात सुनकर राजा भरत दुःखी होता है और पिता से पूछता है- क्या बालक का जन्म नहीं होता, मृत्यु नहीं होती? अगर ऐसा नहीं होता तो बालक प्रव्रज्या के लिए क्यों नहीं जा सकता? किन्तु दशरथ ने उन्हें समझाकर, डराकर पहले राज्य-सुख का उपभोग करने तथा बाद में प्रव्रज्या को जाने के लिए कहकर पट्ट बाँधा और स्वयं ने प्रव्रज्या के लिए प्रस्थान किया। अपभ्रंश काव्य सौरभ 398 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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