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10.
काई
बहु
जंपियई
जं
15
अप्पहु
पडिकूलु
काई
मि
परहु
ण
21.
करहि
एहु
जि
धम्महु
मूलु
11.
धम्मु
विसुद्ध
4. A.
जि
जं
किज्जइ
काएण
अहवा
भ
धणु
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(काई) 1/1 सवि
( बहुत्तअ ) 3 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक
( जंप - जंपिय-- जंपियअ) भूकृ 3/1 'अ' स्वार्थिक
(ज) 1 / 1 सवि
( अप्प ) 4 / 1
(पडिकूल) 1/1 वि
(काई) 1/1 सवि
अव्यय
( पर) 4 / 1 वि
अव्यय
(त) 2 / 1 स
(कर) विधि 2 / 1 सक
( एत) 1 / 1 स
अव्यय
( धम्म) 6 / 1
(मूल) 1 / 1
अव्यय
(ज) 1 / 1 सवि
( कि + इज्ज) व कर्म 3 / 1 सक
(काअ ) 3 / 1
अव्यय
(त) 1 / 1 सवि
( धण) 1 / 1
क्या
बहुत
कहे गए से
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जो
अपने लिए
प्रतिकूल
कैसे
भी
दूसरों के लिए
नहीं
उसको
कर
यह
丽
धर्म का
(धम्म) 1 / 1
धर्म
(विसुद्धअ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक शुद्ध
(त) 1 / 1 सवि
अव्यय
मूल
वह
ही
पूरी तरह से
जो
किया जाता है।
काया से (अपने आप से)
और
वह
धन
15
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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