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सो
वि
लहु
1.
जंप
भो
बुझ
जणणि
सारु
जिणवणु
दयावरु
हँ
तारु
2.
को
कासु
णाहु
को
कासु
भिच्चु
जाहि
संसारु
जि
मणि
अणि
3.
मोहें
बद्धउ
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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(त) 1 / 1 सवि
अव्यय
अव्यय
3.21
(जंप) व 3/1 सक
अव्यय
( बुज्झ ) विधि 2 / 1 सक
( जणणी) 8/1
(सार) 2 / 1 वि
[(जिण) - (वयण) 2/1]
(दयावर ) 2 / 1 वि
( जण) 4 / 2
(तार) 2 / 1 वि
(क) 1 / 1 सवि
( क ) 6 / 1 सवि
(UITE) 1/1
(क) 1 / 1 सवि
(क) 6/1 सवि
( भिच्च) 1 / 1
(जाण) विधि 2 / 1 सक
(संसार) 2/1
अव्यय
मण) 7/1
( अणिच्च) 1 / 1 वि
वह
भी
शीघ्र
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बोलता है (बोला)
हे
समझ
माता
श्रेष्ठ
जिन - वचन को
दयावान
मनुष्यों के लिए
उज्ज्वल
कौन
किसका
नाथ
कौन
किसका
नौकर
जान
संसार को
पादपूरक
मन में
अनित्य
(मोह) 3 / 1
मोह से
(बद्धअ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक जकड़ा हुआ
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