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________________ भयभीयउ भय से काँपा हुआ [(भय)-(भीयअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक] [(कंदरी-कंदरि)'-(विवर) 7/1] कंदरि-विवरि गुफा के द्वार पर 7. थक्कउ (थक्क) व 1/1 अक बैठा तहि अव्यय वहाँ आयमु (आयम) 1/1 आगम बहु सुणिउ संसार-सरूवउ वि चित्ति मुणिउ अव्यय बहुत (सुण) भूकृ 1/1 सुन गया [(संसार)-(सरूवअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक] संसार का स्वरूप अव्यय और (चित्त) 7/1 चित्त में (मुण) भूक 1/1 समझा गया अव्यय जब णिवसमि (णिवस) व 1/1 अक ता अव्यय बैठता हूँ (बैठा) तब सिंह के द्वारा सिंघेण मारा गया (सिंघ) 3/1 (हअ) भूक 1/1 अनि (अम्ह) 1/1 स (सुरवर) 6/1 (जा-जायअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक सुरवर जायउ चिय श्रेष्ठ देव का पाया पादपूरक विशिष्ट पद अव्यय विवउ (वि-वअ) 2/1 मुणिवयणपसाएँ [(मुणि)-(वयण)-(पसाअ) 3/1] मुनि के वचन के प्रसाद से दुक्खभरु [(दुक्ख)-(भर) 2/1] दु:ख के बोझ को छिदिवि (छिंद+इवि) संकृ काटकर कभी-कभी समास में दीर्घ का ह्रस्व हो जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 1-4) वअ-वय-पद। 317 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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