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पण
मेहणिघो
भणेइ
जईसी
2.
दिडु
तए
सिविणंतरे
सारो
पुत्तिए
तुंगु सुदंसणमेरो
3.
किज्जउ
तेण
सुदंस
णामो
सज्जणकामिणिसोत्तहिरामो
4.
तो
जिणयासें-जियासि
णविवि
जईसं
चित्ते
पहि
गया
सणिवासं
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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[[ ( पणट्ठ) भूक अनि - (रइ + ईस ) 1/1] fa]
[[ (मेह) - (णिघोस) 1 / 1] वि]
(भण) व 3 / 1 सक
कहता है (बोले)
[(जइ) + (ईस)] [(जइ) - (ईस) 1 / 1] वि] विशिष्ट मुनि
(दिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि
(तुम्ह) 3 / 1 स
[(सिविण) + (अंतरे)] [(सिविण) - (अन्तर) 7/1]
(सार) 1 / 1 वि
( पुत्ति ) 8 / 1, ए = अव्यय
(तुंग) 1/1 वि
[(सुदंसण) - (मेर) 1 / 1 ]
(क) विधि कर्म 3 / 1 सक
अव्यय
(सुदंसण) 1/1
( णाम) 1 / 1
[(सज्जण) + (कामिणि) + (सोत्त) + (अहिरामो) ] [ ( सज्जण) - (कामिणि) - (सोत्त) - (अहिराम) 1 / 1 वि]
( जिसके द्वारा) काम नष्ट कर दिया गया है (वे)
मेघ के समान स्वरवाले
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देखा गया
तुम्हारे द्वारा
स्वप्न के अन्दर
श्रेष्ठ
पुत्री, हे
ऊँचा
सुन्दर पर्वत
किया जाए ( रखा जाय )
इसलिये
सुदर्शन
नाम
सज्जन और कामिनियों के कानों के लिए मनोहर
अव्यय
तब
( जिणयासी) 1 / 1
जिनदासी
(णव + इवि) संकृ
प्रणाम करके
[(जइ)+(ईस)] [(जइ ) - (ईस) 2 / 1 वि] विशिष्ट मुनि को
(चित्त) 7/1
मन में
( पहिट्ठा - पहिट्ठ) भूकृ 1 / 1 अनि
आनन्दित हुई
गयी
( गय-गया) भूकृ 1 / 1 अनि (सणिवास) 2/1
स्वनिवास को
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