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घत्ता
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घत्ता
पसरइ मेह - विन्दु गयणङ्गर्णे पसरइ जेम तिमिरु अण्णाणहों पसरइ जेम पाउ पाविट्ठहों पसरइ जेम जोण्ह मयवाहहो पसरइ जेम चिन्त धण - हीणहों पसरइ जेम सदु सुर-तूरहों पसरइ जेम दवग्गि वणन्तरें तडि तडयड पडइ धणु गज्जइ
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पइसन्तेहिं असुर - विमद्दर्णेहिँ सिरु णार्मेवि राम-जणद्दर्णेहिं । परिअञ्चेंवि दुमु दसरह - सुऍहिँ अहिणन्दिउ मुणि व सई भु ऍहिँ ॥ 9 ॥
सीस - लक्खणु दासरहि तरुवर - मूले परिट्ठिय जावेंहिँ । पसरइ सु-कइहें कव्वु जिह मेह-जालु गयणङ्गर्णे तावेंहिँ ॥
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सन्धि
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28.1
पसरइ जेम सेण्णु समरङ्गर्णे ॥1 ॥ पसरइ जेम वुद्धि वहु - जाणहों ॥ 2 ॥ पसरइ जेम धम्मु पसरइ जेम कित्ति पसरइ जेम कित्ति पसरइ जेम रासि - हॅ पसरड़ मेह-जालु तिह जा राम सरणु
धम्मिट्ठों ॥3॥ जगणाहों ॥ 4 ॥ सुकुलीणहों ॥ 5 ॥ सूरहों ॥ 6 ॥ अम्वरें ॥ 7 ॥ पवज्जइ ॥ 8 ॥
अमर- महाधणु-गहिय- - करु मेह - गइन्हें चर्डेवि जस - लुद्धउ | उप्पर गिम्भ - णराहिवहाँ पाउस - राउ णाइँ सण्णद्धउ ॥ १ ॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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