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________________ णीससइ गायब (णीसस)1 व 3/1 सक (गा-गाय) व 3/1 सक (हस) व 3/1 सक लालायित रहता है प्रशंसा करता है मिलता-जुलता है हसई सहिऊण सहकर जए जगत में णिवडइ गिरता है नरक में णरए होऊ (सह) संकृ (जअ) 7/1 (णिवड) व 3/1 अक (णरअ) 7/1 (होअ) भूक 1/1 (अबुह) 1/1 वि (रामण) 1/1 (पमुह) 1/1 वि हुआ अज्ञानी अबुहा रामण रावण पमुहा आदरणीय, श्रेष्ठ S. परयाररया चिरु खयहो गया सत्त वि [(पर) वि-(यार)-(स्य) भूकृ 1/1 अनि] पर स्त्री में अनुरक्त हुआ अव्यय आखिरकार (खय) 6/1 विनाश को (गय) भूकृ 1/1 अनि गया (सत्त) 1/2 वि सातों अव्यय समुच्चय अर्थ में प्रयुक्त (वसण) 1/2 व्यसन (एअ) 1/2 सवि (कसण) 1/2 वि अनिष्टकर वसणा कसणा निश्वस्=णीसस लालायित होना, मोनियर विलियम, संस्कृत-अंग्रेजी कोष (देखें-श्वस्)। हस्=मिलना-जुलना, (आप्टे, संस्कृत-हिन्दी कोष)। मात्रा के लिए 'उ' को 'ऊ' किया गया है। कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)। अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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