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________________ भरहणराहिउ (तुम्ह) 3/1 स [(भरह)-(णराहिअ) 1/1] (जिप्पइ) व कर्म 3/1 सक अनि तुम्हारे द्वारा भरत नराधिप जीता जाता है जिप्पड़ 10. होउ पहुप्पइ जंपिएण राउ तुहुप्परि ) 6/1 स तुम्हारे अव्यय आश्चर्य (हो) विधि 3/1 अक होवे (पहुप्प) व 3/1 अक समर्थ होता है (जंपिअ) भूकृ 3/1 प्रलाप किया हुआ होने के कारण (राअ) 1/1 राजा [(तुह)+ (उप्परि)] तुह (तुम्ह) 6/1 स उप्परि=अव्यय ऊपर (वग्ग) व 3/1 अक चौकड़ी भरेगा (कूदता है) (करवाल) 3/2 तलवारों के साथ (सूल) 3/2 त्रिशूलों के साथ (सव्वल) 3/2 बछों के साथ (पर) व 3/1 सक भ्रमण करता है (करेगा) [(रण) (अंगणि) (रण)-(अंगण) 7/1] रण के आँगन में (लग्गअ) भूक 7/1 अनि 'अ' स्वार्थिक निकटवर्ती वग्गइ करवालहिं सूलहिं सव्वलहि परइ रणंगणि लग्गइ 16.21 तब भणियं अव्यय (भण-भणिय) भूकृ 1/1 (स-हेउ) 3/1 वि (मयरकेउ) 3/1 स-हेउणा • मयरकेउणा कहा गया युक्तिसहित कामदेव के द्वारा यहाँ अव्यय एत्थ कहिं अव्यय कहीं अव्यय अपभ्रंश काव्य सौरभ 226 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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