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________________ पर अव्यय बाहुबलि सुदुम्मइ किन्तु बाहुबलि अत्यन्त दुर्मति णउ त तप (बाहुबलि) 1/1 (सुदुम्मइ) 1/1 वि अव्यय (तअ) 2/1 (कर) व 3/1 सक अव्यय (तुम्ह) 4/2 (पणव) व 3/1 सक करइ करता है तुम्हहं तुमको (तुम्हारे लिए) प्रणाम करता है पणवइ 16.19 4. दिण्णं महेसिणा दुरियणासिणा णयरदेसमेत्तं (ज) 1/1 सवि (दिण्ण) भूक 1/1 अनि दिया गया है (दिये गये हैं) (महेसि) 3/1 महर्षि के द्वारा [(दुरिय)-(णासि) 3/1 वि] पाप के नाशक [(णयर)-(देस)-(मेत्त) 1/1] नगर, देश, केवल (त) 1/1 सवि वह (अम्ह) 4/1 स मेरे लिए [(लिह-लिहिय) भूकृ-(सासण) 1/1] लिखित आदेश [(कुल)-(विहसूण) 1/1] कुल की शोभा (हर) व 3/1 सक छीन (सकता) है (क) 1/1 सवि कौन (पहुत्त) 2/1 प्रभुता को मह लिहियसासणं कुलविहसणं पहुत्तं 2. केसरिकेसरु वरसइथणयलु [(केसरि)-(केसर) 2/1] [(वर) वि-(सइ)-(थणयल) 2/1] (सुहड) 6/1 (सरण) 2/1 सिंह के बाल को श्रेष्ठ सती के वक्षस्थल को सुभट की शरण को सुहडहु सरणु 219 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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