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पाठ - 2
पउमचरिउ
सन्धि
- 24
गएँ वण-वासहों रामें उज्झ ण चित्तहों भावइ। थिय णीसास मुअन्ति महि उण्हालएँ णावइ॥
24.1
सयलु वि जणु उम्माहिज्जन्तउ उव्वेल्लिज्जइ गिज्जइ लक्खणु सुइ-सिद्धन्त-पुराणेहिँ लक्खणु अण्णु वि जं जं किं पि स-लक्खणु का वि णारि सारङ्गि व वुण्णी का वि णारि जं लेइ पसाहणु का वि णारि जं परिहइ कङ्कणु का वि णारि जं जोयइ दप्पणु तो एत्थन्तरें पाणिय-हारिउ 'सो पल्लङ्कु तं जें उवहाणउ
खणु वि ण थक्कइ णामु लयन्तउ॥1॥ मुरव-वजें वाइज्जइ लक्खणु॥2॥ ओङ्कारेण पढिज्जइ लक्खणु॥3॥ लक्खण-णामें वुच्चइ लक्खणु॥4॥ वड्डी धाह मुएवि परुण्णी॥5॥ तं उल्हावइ जाणइ लक्खणु॥6॥ धरइ सु-गाढउ जाणइ लक्खणु॥7॥ अण्णुण पेक्खइ मेल्लेंवि लक्खणु॥8॥ पुरे वोल्लन्ति परोप्परु णारिउ॥9॥ सेज्ज वि स ज्जें तं जें पच्छाणउ॥10॥
घत्ता -
तं धरु रयणइँ ताइँ तं चित्तयम्मु स-लक्खणु। णवर ण दीसइ माएँ रामु ससीय-सलक्खणु'।
10
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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