________________
सच्यु समप्पेवि भज्जहे भरहहो बन्धेवि
(सच्च) 2/1 (समप्प+एवि) संकृ (भज्जा) 6/1 (भरह) 6/1 (बन्ध+एवि) संकृ (पट्ट) 2/1 (दसरह) 1/1 (गअ) भूकृ 1/1 अनि (पव्वज्जा) 4/1
वचन को समर्पित करके (पूरा करके) पत्नी के भरत के (को) बाँधकर
पट्ट
दसरहु गउ पव्वज्जो
दशरथ चले गये प्रव्रज्या के लिए
155
अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org