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________________ 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 110 Jain Education International अणु म जाणहि अप्पणउ धरु परियणु तणु इडु | कम्मायत्तउ कारिमउ आगमि जोइहिं सिहु ॥ दुक्खुवितं सुक्खु किउ जं सुहु तं पि य दुक्खु । पई जिह मोहहिं वसि गयइं तेण ण पायउ मुक्खु ॥ मोक्खु ण पावहि जीव तुहुं धणु परियणु चिंतंतु । तो इ विचिंतहि तउ जि तउ पावहि सुक्खु महंतु ॥ मूढा सयलु वि कारिमउ मं फुडु तुहुं तुस कंडि । सिवपड़ णिम्मलि करहि रइ धरु परियण लहु छंडि ॥ विसयसुहा दुइ दिवहडा पुणु दुक्खहं परिवाडि । भुल्लउ जीव म वाहि तुहुं अप्पाखंधि कुहाडि ॥ उव्वलि चोप्पडि चिट्ठ करि देहि सुमिट्ठाहार । सयल वि देह णिरत्थ गय जिह दुज्जणउवयार ॥ अथिरेण थिरा मइलेण णिम्मला णिग्गुणेण गुणसारा । कारण जा विढप्पड़ सा किरिया किण्ण कायव्वा ॥ For Private & Personal Use Only अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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