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अणु म जाणहि अप्पणउ धरु परियणु तणु इडु | कम्मायत्तउ कारिमउ आगमि जोइहिं सिहु ॥
दुक्खुवितं सुक्खु किउ जं सुहु तं पि य दुक्खु । पई जिह मोहहिं वसि गयइं तेण ण पायउ मुक्खु ॥
मोक्खु ण पावहि जीव तुहुं धणु परियणु चिंतंतु । तो इ विचिंतहि तउ जि तउ पावहि सुक्खु महंतु ॥
मूढा सयलु वि कारिमउ मं फुडु तुहुं तुस कंडि । सिवपड़ णिम्मलि करहि रइ धरु परियण लहु छंडि ॥
विसयसुहा दुइ दिवहडा पुणु दुक्खहं परिवाडि । भुल्लउ जीव म वाहि तुहुं अप्पाखंधि कुहाडि ॥
उव्वलि चोप्पडि चिट्ठ करि देहि सुमिट्ठाहार । सयल वि देह णिरत्थ गय जिह दुज्जणउवयार ॥
अथिरेण थिरा मइलेण णिम्मला णिग्गुणेण गुणसारा । कारण जा विढप्पड़ सा किरिया किण्ण कायव्वा ॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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