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पाठ
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पाहुडदोहा
गुरु दिrयरु गुरु हिमकरणु गुरु दीवउ गुरु देउ । अप्पापरहं परंपरहं जो दरिसावड़ भेउ ॥
अप्पायत्त जंजिहु तेण जि करि संतोसु । परसुहु वढ चिंतंतहं हियइ ण फिट्टइ सोसु ॥
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आभुंजंता विसयसुह जे ण वि हियड़ धरंति ते सासयसुहु लहु लहहिं जिणवर एम भांति ॥
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वि भुजंता विसय सुह हियडइ भाउ धरंति । सालिसित्थु जिम वप्पुडउ णर णरयहं णिवडंति ॥
आयइं अडवड वडवडइ पर रंजिज्जइ लोउ । मणसुद्धइं णिच्चलठियां पाविज्जइ परलोउ ॥
धंधई पडियउ सयलु जगु कम्मई करइ अयाणु । मोक्खहं कारणु एक्कु खणु ण वि चिंतइ अप्पाणु ॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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