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जेहउ णिम्मलु णाणमउ सिद्धिहिँ णिवसइ देउ । तेहउ णिवसइ बंभु परु देहहँ मं करि भेउ ॥
जँ दिट्ठे तुहंति लहु कम्मइँ पुव्व - कियाइँ। सो परु जाणहि जोइया देहि वसंतु ण काइँ ॥
जित्थु ण इंदिय - सुह- दुहइँ जित्थु ण मण - वावारु । सो अप्पा मुणि जीव तुहुँ अण्णु परिं अवहारु ॥
देहादेहहिँ जो वसई भेयाभेय - णएण | सो अप्पा मुणि जीव तुहुँ किं अण्णे बहुएण ॥
जीवाजीव म एक्कु करि लक्खण भेएँ भेउ । जो परु सो परु भणमि मुणि अप्पा अप्पु अभेउ ॥
अणु अणिदिउ णाणमउ मुत्ति-विरहिउ चिमित्तु । अप्पा इंदिय विसउ णवि लक्खणु एहु णिरुत्तु ॥
भव-तणु - भोय - विरत्त मणु जो अप्पा झाए । तासु गुरुक्की वेल्लडी संसारिणि तुट्टेइ ॥
देहादेवलि जो वसई देउ अणाइ- अणंतु । केवल-णाण- फुरंत-तणु सो परमप्पु णिभंतु ॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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