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________________ महाकवि भूधरदास हिन्दी भाषा के जैन-कवियों में महाकवि भूधरदास का नाम उल्लेखनीय है । कवि आगरा निवासी थे और इनकी जाति खण्डेलवाल थी । इससे अधिक इनका परिचय प्राप्त नहीं होता है | इनकी रचनाओं के अवलोकन से यह अवश्य ज्ञात होता है कि कवि श्रद्धालु और धर्मात्मा थे । कविता करने का अच्छा अभ्यास था । कवि के कुछ मित्र थे, जो कवि से ऐसे सार्वजनीन साहित्यका निर्माण कराना चाहते थे, जिसका अध्ययन कर साधारण जन भी आत्म . साधना और आचार-तत्त्वको प्राप्त कर सके। उन्हीं दिनों आगरामें जयसिंहसवाई सूबा और हाकीम गुलाबचन्द वहाँ आये । शाह हरिसिंहके वंशमें जो धर्मानुरागी मनुष्य थे उनकी बार-बार प्रेरणा से कवि के प्रमादका अन्त हो गया और कवि ने विक्रम सं. १७८१ में पौष कृष्णा त्रयोदशी के दिन अपना 'शतक' नामक ग्रन्थ रचकर समाप्त किया । __ कवि के हृदयमें आत्मकल्याण की तरंग उठती थी और विलीन हो जाती थी, पर वह कुछ नहीं कर पाते थे । अध्यात्मगोष्ठी में जाना और चर्चा करना नित्यका काम था । एक-दिन कवि अपने मित्रों के साथ बैठे हुए थे कि वहाँ से एक वृद्ध पुरुष निकला, जिसका शरीर थक चुका था, दृष्टि कमजोर हो गई थी, लाठीके सहारे चला जा रहा था । उसका सारा शरीर काँप रहा था । मुँह से कभी-कभी लार भी टपकती थी । वह लाठी के सहारे स्थिर होकर चलना चाहता था, पर वहाँ से दस-पाँच कदम ही आगे चल पाया था कि संयोग से उसकी लाठी टूट गई । पास में स्थित लोगों ने उसे खड़ा किया और दूसरी लाठी का सहारा देकर, उसे घर पहँचाया । वृद्धकी इस अवस्था से कवि भूधरदास का मन विचलित हो गया और उनके मुखसे निम्नलिखित पद्य निकल पड़ा - आया रे बुढ़ापा मानी, सुधि-बुधि बिसरानी ।। श्रवन की शक्ति घटी, चाल चले अटपटी, देह लटी भूख घटी, लोचन झरत पानी ।।१।। दाँतनकी पंक्ति टूटी, हाड़न की सन्धि छूटी, काया की नगरी लूटी, जात नहिं पहिचानी ।।२।। बालों ने वरन फेरा, रोग ने शरीर घेरा, पुत्रहू न आवै नेरा, औरोंकी कहा कहानी ।।३।। १. आगरे मैं बालबुद्धि भूधर खंडेलवाल, बालकके ख्याल सौं कवित्त कर जानैं है। ऐसे ही करत भयो जैसिंह सवाई सूबा , हाकिम गुलाबचन्द आये तिहि थाने हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002686
Book TitleParshvapurana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi, Nathuram Premi
PublisherSanmati Trust Mumbai
Publication Year2001
Total Pages175
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size6 MB
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