SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संदृष्टि नं. 23 निवृत्यपर्याप्त स्त्री भाव (28) निर्वृत्यपर्याप्त स्त्री के 28 भाव होते है जो इस प्रकार है- कुज्ञान 2 चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, क्षायोपशमिकलब्धि 5, मनुष्यगति, कषाय 4, स्त्रीवेद, लेश्या 6, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, मिथ्यात्व, पारिणामिक भाव 31 गुणस्थान मिथ्यात्व और सासादन दो होते है। गुणस्थान भाव व्युच्छित्तिा भाव अभाव मिथ्यात्व 2 (मिथ्यात्व, 28 (उपर्युक्त समस्त | अभव्यत्व) भाव जानना चाहिए। 2 (मिथ्यात्व, अभव्यत्व) सासादन 2 (कुज्ञान 2) |26 (उपर्युक्त 28- मिथ्यात्व, अभव्यत्व) उवसमखाइयसम्मं तियपरिणामा खओवसमिएसु। मणपज्जवदेसजमं सरागचरिया ण सेस हवे ।।66।। उपशमक्षायिकसम्यक्त्वं त्रिकपरिणामाः क्षायोपशमिकेषु । मनः पर्ययदेशयमं सरागचारित्रं न शेषा भवन्ति ।। ओदइए थी संढे अण्णगदीतिदयमसुहतियलेस्सं । अवणिय सेसा हुंति हु भोगजमणुवेसु पुण्णेसु ।।6।। औदयिके स्त्री षंढं अन्यगतित्रितयमशुभत्रिकलेश्याः । अपनीय शेषा भवन्ति हि भोगजमनुष्येषु पूर्णेषु ।। अन्वयार्थ - (पुण्णेसु) पर्याप्त (भोगजमणुवेसु) भोग भूमि के मनुष्यों (पुरुषवेदी) में (उवसमखाइयसम्म) उपशम और क्षायिक सम्यक्त्व होते हैं। (खओवसमिएसु) क्षायोपशमिक भावों में से (मणपज्जव) मनः पर्ययज्ञान, (देसजमं) देशसंयम और (सरागचरिया) सरागचारित्र (तियपरिणामा ण) इन भावों को छोड़कर (सेस) शेष पन्द्रह भाव (हवे) होते हैं। (ओदइए) तथा औदयिक भावों में से (थी (68) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy