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________________ का उल्लेख कर, गुणस्थानों और मार्गणाओं में संभव भावों का क्रमशः निरूपण किया है । ग्रन्थ के अन्त में संदृष्टियाँ प्रस्तुत की है। उन संदृष्टियों में प्रथम विवक्षित गुणस्थान अथवा मार्गणा में होने वाली भाव व्युच्छित्ति, पश्चात् भाव सद्भाव और अंत में अभाव स्वरूप भावों का कथन किया है। ग्रन्थ में विशेषताएँ - प्रायः ग्रंथकार ग्रंथ के आदि में मंगलाचरण करते हैं अथवा आदि और अंत में करते हैं किन्तु श्री श्रुतमुनि ने ग्रंथ में तीन बार आदि, मध्य और अंत में मंगलाचरण प्रस्तुत किया है। भावों का स्वरूप बतलाते हुए गाथा 22 में क्षयोपशम भाव की परिभाषा करते हुये कहा है कि - “उदयो जीवस्स गुणो रखओवसमिओ हवे भावो ||22|| अर्थात् जीव के गुणों का उदय क्षयोपशम भाव है । क्षयोपशम भाव की यह परिभाषा शब्द संजोयना की अपेक्षा से नवीनता प्रकट करती है ठीक इसी प्रकार औदयिक भाव की परिभाषा कायम करते हुये कहा है - "कम्मुदयजकम्मुगुणो ओदयियो होदि भावो हु' ||23|| अर्थात् कर्मों के उदय से उत्पन्न होने वाले कर्मगुण - औदयिक कहलाते हैं । यह परिभाषा शब्द - संयोजना अपेक्षा विशिष्टता रखती है । - श्री श्रुतमुनि ने औपशमिक चारित्र का सद्भाव 11 वें गुणस्थान में, क्षायिक चारित्र का अस्तित्व 12 वें गुणस्थान से 14वें गुणस्थान तक तथा सराग चारित्र को 6-10 तक स्वीकार किया है। कर्मकाण्ड ग्रंथराज में भावों का कथन गुणस्थानों में विवेचित किया गया किन्तु मार्गणाओं में 53 भावों की संयोजना करने वाला यह एक मात्र अनुपम ग्रंथ है। ग्रन्थ में विचारणीय बिन्दु - मिश्र गुणस्थान में आचार्य श्री ने अवधिदर्शन का सद्भाव स्वीकार किया है। जबकि धवलाकार ने मिश्र गुणस्थान में चक्षु, अचक्षु दर्शन का ही उल्लेख किया है। तथा अन्य कर्म ग्रन्थों में भी दो दर्शनों का सद्भाव देखने को मिलता है । वैक्रियिक मिश्र काययोग में चतुर्थ गुणस्थान में स्त्रीलिंग को स्वीकार किया गया क्योंकि यहाँ 32 भावों का सद्भाव कहा गया है। वैक्रियिक मिश्रकाय योग चतुर्थ गुणस्थान में स्त्रीलिंग का सद्भाव यह विचारणीय विषय है। आहारक काययोग और आहारक मिश्र काययोग की संदृष्टि में 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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