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कि द्रव्य एवं भावस्त्री में पुरुषवेद, नपुंसकवेद, क्षायिक भाव, उपशम चारित्र, सराग चारित्र और मनः पर्यय ज्ञान नहीं पाया जाता है।
इस गाथा का कथन द्रव्य स्त्रीवेद की अपेक्षा समझ में आता है क्योंकि भावस्त्री वेदी के सराग चारित्र होने का निषेध नहीं है तथा भावस्त्री वेदी के क्षायिक भाव के नौ भेदों में से क्षायिक सम्यक्त्व भी हो सकता है। गाथा में आगत भावस्त्री शब्द विचारणीय है।
तासिमपज्जत्तीणं वेभंगं णत्थि मिच्छ गुणठाणे । सासादणगुणठाणे पवट्टणं होदि नियमेण || 65 ॥ तासामपर्याप्तीनां विभंगं नास्ति मिथ्यात्वगुणस्थाने ।
सासादनगुणस्थांने प्रवर्तनं भवति नियमेन || अन्वयार्थ - (तासिमपज्जत्तीणं) मनुष्यगति में स्त्रियों के अपर्याप्त अवस्था में (वेभंग) विभंगावधि ज्ञान (णत्यि) नहीं होता है तथा (नियमेण) नियमसे (मिच्छ गुणठाणे)मिथ्यात्वगुणस्थान में (सासादणगुणठाणे) एवं सासादन गुणस्थान में (पवट्टणं)प्रवर्तन (होदि) होता
संदृष्टि नं. 22
पर्याप्त स्त्री भाव (36) पर्याप्त स्त्री के 36 भाव होते है जो इस प्रकार है - औपशमिक, सम्यक्त्व, 3 ज्ञान, 3 कुज्ञान, 3 दर्शन, क्षायोपशमिक लब्धि 5, मनुष्यगति, कषाय 4, क्षयोपशम सम्यक्त्व, स्त्रीलिंग, लेश्या 6, संयमासंयम, मिथ्यादर्शन, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 31 गुणस्थान आदि के पांच होतेहै । संदृष्टि इस प्रकार हैगुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव
अभाव मिथ्यात्व |2 (मिथ्यात्व, 129 (कुज्ञान 3, दर्शन 2,17 (औपशमिक सम्यक्त्व, अभव्यत्व)
क्षयोपशम लब्धि 5, मति आदि 3 ज्ञान, अवधि मनुष्यगति, कषाय 4, स्त्रीलिंग, लेश्या 6,
दर्शन,क्षायोपशम मिथ्यादर्शन, असंयम | सम्यक्त्व, संयमासंयम) अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3)
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