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गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति क्षीण मोह 13 ( मति
आदि 4 ज्ञान,
चक्षु आदि 3
दर्शन,
सयोग केवली
अयोग के वली
क्षायोपशमिक
5 लब्धि,
अज्ञान)
1 ( शुक्ल लेश्या)
8 ( क्षायिक दानादि चार लब्धि, क्षायिक
चारित्र,
मनुष्यगति, असिद्धत्व,
भव्यत्व)
भाव
| 20 ( क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिकचारित्र, मति आदि 4 ज्ञान, चक्षु आदि 3 दर्शन, क्षायोपशमिक 5 लब्धि,
गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति
मिथ्यात्व 2 ( मिथ्यात्व, अभव्यत्व)
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मनुष्य गति, शुक्ल लेश्या, अज्ञान, | असिद्धत्व, जीवत्व,
भव्यत्व
14 ( क्षायिक भाव 9, मनुष्य गति, असिद्धत्व, शुक्ल लेश्या, जीवत्व, भव्यत्व)
13 ( उपर्युक्त 14 - शुक्ल लेश्या)
संदृष्टि नं. 20
निर्वृत्य पर्याप्त मनुष्य भाव (45)
निर्वृत्यपर्याप्त मनुष्य के 53 भावों में से नरकगति, तिर्यञ्चगति, देवगति, उपशम सम्यक्त्व, उपशम चारित्र, विभंगावधिज्ञान, मनः पर्ययज्ञान, संयमासंयम भावो को छोड़कर शेष 45 भाव होते है । गुणस्थान- मिथ्यात्व, सासादन, असंयत प्रमत्त विरत एवं सयोग के वली ये पाँच पाये जाते हैं ।
संदृष्टि इस प्रकार है
अभाव
30 ( उपर्युक्त 29 - क्षायिक चारित्र + औपशमिक सम्यक्त्व, औपशमिक चारित्र )
भाव
30 ( कुज्ञान 2, दर्शन 2, क्षायोपशमिक लब्धि 5, मनुष्यगति, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6,
(63)
36 (औपशमिक भाव 2, क्षायोपशमिक भाव 18, कषाय 4, मिथ्यात्व, असंयम, कृष्णादि लेश्या 5 अज्ञान, अभव्यत्व, लिंग 3) 37 ( उपर्युक्त 36+ शुक्ल लेश्या)
अभाव
15 ( क्षायिक भाव 9, मति आदि 3 ज्ञान, अवधि दर्शन, क्षायो. सम्यक्त्व क्षयों, चारित्र)
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