SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संदृष्टि नं. 16 लब्धपर्याप्तक तिर्यञ्च (25 भाव) लब्ध पर्याप्तक तिर्यञ्च के 25 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं- कुमति, कुश्रुत ज्ञान, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, क्षायोपशमिक पाँच लब्धि, तिर्यंचगति, क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय नपुंसक लिंग, कृष्ण, नील, कापोत लेश्या, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व, - इनके मात्र एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही होता है । संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति मिथ्यात्व {0} भाव Jain Education International {25} उपर्युक्त 25 भाव (0) ही जानना चाहिए । भोगजतिरिइत्थीणं अवणिय पुंवेदमित्थिसंजुत्तं । तासि वेदगसम्मं उवसमसम्मं च दो चेव ||59|| भोगजतिर्यक्स्त्रीणां अपनीय पुंवेदं स्त्रीसंयुक्तं । तासां वेदकसम्यक्त्वं उपशमसम्यक्त्वं च द्वे चैव ॥ अन्वयार्थ (भोगजतिरिइत्थीणं) स्त्रीवेदी भोग भूमिज तिर्यञ्चों के पर्याप्त अवस्था में (पुंवेदं अवणिय) पुरुषवेद को कम करके अर्थात् छोड़कर (इत्थिसंजुत्तं) स्त्रीवेद मिलाकर (तासिं) उनके (वेदगसम्मं ) वेदकसम्यक्त्व (च) और (उवसमसम्मं) उपशम सम्यक्त्व (दो) ये दो (चेव) सम्यक्त्व ही होते हैं । भावार्थ - भोग भूमिज स्त्रियों में पर्याप्तक अवस्था में पुरुषवेद के 33 भावों में से पुरुष वेद घटाकर स्त्रीवेद मिलाकर तथा स्त्रीवेदियों में क्षायिक सम्यग्दर्शन का अभाव होने से केवल उपशम सम्यक्त्व एवं वेदक सम्यक्त्व ही पाया जाता है । (55) अभाव For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy