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गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति
भाव
अभाव
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सासादन |{2} {कुमति, |{28} {कुमति, कुश्रुत |(2){मिथ्यात्व, अभव्यत्व)
ज्ञान, कुश्रुत ज्ञान चक्षु, अचक्षु दर्शन, ज्ञान} क्षायोपशमिक पाँच
लब्धि, तिर्यञ्चगति, क्रोध, मान, माया, लोभ, स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसक लिंग, कृष्ण नील, कापोत, पीत पद्म शुक्ल लेश्या असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व भव्यत्व
एवं भोगजतिरिए पुण्णे किण्हतिलेस्सदेसजमं । थीसंढ ण हि तेसिं खाइयसम्मत्तमत्थित्ति ।।56।। - एवं भोगजतिरश्चि पूर्णे कृष्णत्रिलेश्यादेशसंयमं ।
स्त्रीषण्डं न हि तेषां क्षायिक सम्यक्त्वमस्तीति ।। अन्वयार्थ - (एवं) इसी प्रकार (भोगजतिरिए) भोगभूमिज तिर्यञ्चों के (पुण्णे) पर्याप्त अवस्था में (किण्हतिलेस्स) कृष्णादितीन लेश्याएँ, (देसजम) देशसंयम, (थीसंद) स्त्रीवेद, नपुसंकद (ण हि) नहीं होता है (तेसिं) उनके (खाइयसम्मत्तमत्थित्ति) क्षायिक सम्यक्त्व होता है।
भावार्थ - भोग भूमिज पुरुषवेदी तिर्यंच के पर्याप्त अवस्था में कृष्णादि तीन लेश्याएं, देश संयम, स्त्रीवेद, नपुंसक वेद नहीं होता है तथा उनके क्षायिक सम्यक्त्व होता है। इस कथन का खुलासा इस प्रकार है भोग भूमि में पर्याप्त अवस्था में तीन शुभ लेश्याएँ ही होती हैं अतः कृष्णादिलेश्याओं का अभाव कहा गया है। जिस मनुष्य ने पहले अशुभ परिणामों के निमित्त से तिर्यंच आयु का बंध कर लिया है बाद में उसने केवली या श्रुतकेवली के पादमूल में क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त किया तो वह जीव मरकर भोग भूमि के
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