________________
संदृष्टि नं. 11 षण्णारकापर्याप्त (2-7 पृथ्वी की अपर्याप्त अवस्था) भाव {23} दूसरी पृथ्वी से सातवीं पृथ्वी तक अपर्याप्त अवस्था में 23 भाव होते हैं । गुणस्थान एक मिथ्यात्व होता है । 23 भाव इस प्रकार हैं - कुशान2, दर्शन 2, क्षायोपशमिक लब्धि 5, नरकगति, कषाय 4, नपुंसकलिंग, विवक्षित कोई एक लेश्या ( कृष्ण, नील कापोत में से), मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3, संदृष्टि इस प्रकार है। गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति। मिथ्यात्व
23 (उपर्युक्त)
भाव
अभाव
सासणठिअऽणाणदुगं असंजदठियकिण्हनीललेसदुग। मिच्छमभव्वं च तहा मिच्छाइट्ठिम्मि वुच्छे दो।।53।। सासादनस्थिताज्ञानद्विकं असंयतस्थितकृष्णनीललेश्याद्विकं । मिथ्यात्वमभव्यत्वं च तथा मिथ्यादृष्टौ व्युच्छेदः ॥ अन्वयार्थ - निर्वृत्यपर्याप्त अवस्था में भोगभूमिज तिर्यंच के (सासणठि अऽणाणदुर्ग) सासादन गुणस्थान में दो अज्ञान अर्थात् कुमति ज्ञान, कुश्रुत ज्ञान (असंजदठियकिण्हनीललेसदुगं)तथा चौथे गुणस्थान में स्थित कृष्ण नील लेश्यायों की सासादन गुणस्थान में व्युच्छित्ति हो जाती है (मिच्छाइदिम्मि) मिथ्यात्व गुणस्थान में (मिच्छ मभव्वं च) मिथ्यात्व और अभव्यत्व की (वुच्छे दो)व्युच्छित्ति होती है।
भावार्थ-निर्वृत्यपर्याप्त अवस्था में भोगभूमिज तिर्यंच के 31 भाव होते हैं गुणस्थान प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ ये तीन होते हैं। इन 31 भावों में से प्रथम गुणस्थान में मिथ्यात्व और अभव्यत्व इन दो भावों की, दूसरे गुणस्थान में कुमतिज्ञान, कुश्रुत ज्ञान, कृष्ण लेश्या एवं नील लेश्या इन चार भावों की व्युच्छिति हो जाती है - कारण यह है कि निवृर्त्यपर्याप्तक चतुर्थ गुणस्थानवर्ती भोग भूमिज तिर्यंच के कृष्ण, नील लेश्या कासद्भाव नहीं पाया जाता है - वहाँ कापोत लेश्या का जघन्य अंश पाया जाता है किन्तु पर्याप्त होते ही शुभ लेश्याये हो जाती हैं तथा चौथे गुणस्थान में
(45)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org