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उपशम से (उवसमं चरण) उपशम चारित्र (खयदो खइयं) क्षय से क्षायिक चारित्र (खओवसमदो) क्षयोमशम से (सरागचारित्तं) सराग चारित्र अर्थात् क्षायोपशमिक चारित्र (होदि) होता है।
भावार्थ - मोहनीय कर्म की 28 प्रकृतियाँ होती हैं। जिनमें से चारित्र मोहनीय की 21 प्रकृतियों अर्थात् अप्रत्याख्यान-क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यान - क्रोध, मान, माया, लोभ, संज्वलन- क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद तथा नपुंसक वेद इन प्रकृतियों के उपशम से उपशम चारित्र प्रगट होता है। यह चारित्र ग्यारहवेंगुणस्थान अर्थात् उपशान्त मोह नामक गुणस्थान में पाया जाता है तथा चारित्र मोहनीय की 21 प्रकृतियों के क्षय से जो चारित्र प्रगट होता है उसे क्षायिक चारित्र कहते हैं यह चारित्र क्षीण मोह अर्थात् वारहवें गुणस्थान से प्रारंभ होकर अयोग केवली तथा सिद्धों के भी पाया जाता है। चारित्र मोहनीय की 21 प्रकृतियों के क्षयोपशम से सराग चारित्र अर्थात् क्षायोपशमिक चारित्र होता है यह चारित्रछटवेंगुणस्थान से दसवेंगुणस्थान तक पाया जाता है ऐसा आचार्य महाराज का अभिमत है।
आदिमकसायबारसखओवसम संजलणणोकसायाणं। उदयेण (य) जं चरणं सरागचारित्त तं जाण ||1||
आदिमकषायद्वादशक्षयोपशमेन संज्वलननोकषायाणां।
उदयेन 'च' यच्चरणं सरागचारित्रं तज्जानीहि ।। . अन्वयार्थ - (आदिमकसायबारसखओवसम) आदि की बारह कषाय के क्षयोपशम से और (संजलणणोकसायाणं) संज्वलन कषाय और नव नोकषाय के उदय से(जं चरणं) जो चारित्र होता है (तं) उसको (सरागचारित्तं) सरागचारित्र अर्थात् क्षायोपशमिक चारित्र (जाण) जानना चाहिए।
भावार्थ - अनंतानुबंधी अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान, क्रोध, मान, माया और लोभ इन बारह कषायों के क्षयोपशम तथा संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ और नवनो कषाय के उदय सेतो चारित्र होता है उसको सराग चारित्र कहते हैं।
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