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तिरियगति लिंगमसुहतिलेस्सकसायासंजममसिद्धं । अण्णाणं मिच्छत्तं कुमइदुगं चक्खुदुगं च दाणादी ।।112।। तिर्यग्गतिः लिङ्गं अशुभत्रिकलेश्याकषायासंयमा असिद्धत्वम् । अज्ञानं मिथ्यात्वं कुमतिद्विकं चक्षुर्द्विकं च दानादयः ।। तियपरिणामा एदे असण्णिजीवस्स संति भावा हु। आहारेऽखिलभावामणपज्जवसमसरागदेसजमं ।।13।। त्रिकपारिणामिका एते असंज्ञिजीवस्य सन्ति भावा हि।
आहारेऽखिलभावा मनः पर्ययशमसरागदेशयमं ।। वेभंगमणाहारे णो संति हु सेसभावगणणा य । विच्छित्ति गुणट्ठाणा कम्मणकायम्हि वणीदव्वा।।114।।
विभंगमनाहारे नो संति हि शेषभावगणना च ।
विच्छित्तिः गुणस्थानानि कार्मणकाये वर्णितव्यानि ॥ अन्वयार्थ - (असण्णिजीवस्स) असंज्ञीजीवके (तिरियगदि) तिर्यंच गति (लिंगमसुहतिलेस्स कसायासंजमसिद्धं) तीनो लिंग, अशुभ तीन लेश्यायें चार कषायें, असंयम, असिद्धत्व, अज्ञान, मिथ्यात्व (कुमइदुग) कुमति, कुश्रुत ज्ञान, (चक्खुदुर्ग) चक्षु दर्शन, अचक्षुदर्शन (दाणादी) क्षायोपशमिक दानादिक 5 लब्धियां (च) और (तियपरिणामा) तीनो पारिणामिक भाव (एदे) ये सभी (भावा) भाव (संति) होते हैं। (आहारे) आहारक मार्गणा में (अखिलभावा) सभी भाव पाये जाते हैं। (अणाहारे) अनाहारक मार्गणा में (मणपज्जवसमसरागदेसजमं) मनः पर्यय ज्ञान, उपशम चारित्र, सराग चारित्र, देश चारित्र (वेभंग) विभंगावधि (णो) नहीं (संति) होते हैं। (य) और (सेसभावगणणा) शेष भावों की संख्या
और (विच्छित्ति) भावों की व्युच्छित्ति तथा (गुणट्ठाणा) गुणस्थान (कम्मण कायम्हि) कार्मण काययोग में (वणी दवा) वर्णित किये गये
हैं।
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