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अन्वयार्थ - (देसजमे) देशचारित्र में (सुहलेस्सतिवेदति णरतिरियगदिकसाया) तीन शुभ लेश्यायें, तीनों वेद, मनुष्यगति, निर्यच गति, चारकषाय (अण्णाणमसिद्धत्तं) अज्ञान, असिद्धत्व, (णाणतिदसणति देसदाणादी) तीन ज्ञान, तीन दर्शन, क्षायोपशमिक दानादिक 5 लब्धियाँ (एदे ) ये (भावा) भाव (संति) होते हैं।
टिप्पण- एक देश गुणों के प्रकट होने के कारण 'देसदाणादि' शब्द से क्षायोपशमिक भाव का ग्रहण करना चाहिए।
संदृष्टि नं. 66
देशसंयम भाव (31) देशसंयम में 31 भाव होते हैं। जो इस प्रकार हैं - उपशम सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, ज्ञान 3, दर्शन 3, क्षयो. लब्धि 5, वेदक सम्यक्त्व, संयमासंयम, तिर्यंचगति, मनुष्यगति, कषाय 4, लिंग 3, शुभ लेश्या 3, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व । गुणस्थान एक ही होता है । संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव
अभाव
देशसंयत
31 (उपर्युक्त कथित)
जीवत्तं भव्वत्तं सम्मत्ततियं सामाइयदुगे एवं । तिरियगदिदेसहीणा मणपज्जवसरागजमसहियं ।।100॥
जीवत्वं भव्यत्वं सम्यक्त्वत्रिकं सामायिकद्विके एवं ।
तिर्यगतिदेशहीना मनःपर्ययसरागयमसहिताः ।। अन्वयार्थ - (सामाइयदुगे) सामायिक चारित्र और छेदोपस्थापना चारित्र में (जीवत्तं) जीवत्व (भव्वत्तं) भव्यत्व (सम्मत्ततियं) तीनों सम्यक्त्व (एवं) और (तिरियगदि देसहीणा) तिर्यंचगति, देश चारित्र को छोड़कर (मणपज्जवसरागजमसहियं) मनः पर्यय ज्ञान, सरागसंयम सहित (एदे) ये (भावा) भाव (संति) होते हैं। भावों के नाम निम्नलिखित संदृष्टि में देखें।
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