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________________ केवलज्ञान में 14 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं- क्षायिक भाव 9, मनुष्यगति, शुक्ललेश्या, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व गुणस्थान सयोग - अयोग के वली 2 होते हैं । संदृष्टि इस प्रकार है - - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति सयोग केवली 1. (शुक्ल लेश्या) अयोग 8 ( क्षायिक केवली दानादि 4 लब्धि, असिद्धत्व, भव्यत्व, जीवत्व, मनुष्यगति) संदृष्टि नं. 64 केवलज्ञान भाव 14 Jain Education International भाव 14 ( क्षायिक भाव 9, मनुष्यगति, शुक्ल लेश्या, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व) 0 13 ( उपर्युक्त 14 में से 1 (शुक्ल लेश्या) शुक्ल लेश्या कम करने पर 13 शेष रहते हैं । ओदइया भावा पुण णाणति दंसणतियं च दाणादी । सम्मत्तति अण्णाणति परिणामति य असंजमे भावा ॥ 98|| औदयिका भावाः पुनः ज्ञानत्रिकं दर्शनत्रिकं च दानादयः । सम्यक्त्वत्रिकं अज्ञानत्रिकं पारिणामिकत्रिकं च असंयमे भावाः || अन्वयार्थ - (असंजमे) असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में (ओदयाभावा) औदयिक सभी भाव (पुण) पुनः (णाणति) ज्ञानत्रिक अर्थात् मतिज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधिज्ञान (दंसणतिय) चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधि दर्शन, (च) और (दाणादी) क्षायोपशमिक दानादिक 5 लब्धियां (सम्मत्तति) तीनों सम्यक्त्व, (अण्णाणति) कुमति, कुश्रुत विभङ्गावधिज्ञान ( परिणामति) पारिणामिक तीन (एदे) ये (भावा) भाव (संति) होते हैं। (116) अभाव For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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